गुरू कृपा ही केवलम्🌷
“प्रेम”
प्रेम मे अद्भुत शक्ति व सामर्थ्य है।अगर उस परमात्मा को झुकाने की सामर्थ्य किसी मे है तो वो मात्र प्रेम ही है ।चाहे केवट,शबरी, हनुमानजी, सुग्रीव, विभीषण, अर्जुन, गोपियां, बिदुर जी,सुदामा जी के आगे हो,प्रेम में वशीभूत होकर कितनी ही बार उस प्रभु को झुकते हुए देखा गया है ।
प्रभु प्रेम में झुके हैं, इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि प्रेम में ही किसी को झुकाने की शक्ति व सामर्थ्य है।और जो प्रेम स्वयं भगवान को झुका सकता है, वह इंसान को क्यूँ नहीं झुका सकता है ? निःसंदेह वह इंसानों को भी झुका सकता है।प्रेम में झुकते हुए प्रभु ने यही सीख दी है कि अगर आप सामने वाले से प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हैं तो निःसंदेह आप उसके ऊपर अपना आधिपत्य भी जमा लेते हैं।
किसी को जीतना चाहते है तो उसे प्रेम से जीतिए।किसी को डराकर, धमकाकर और बल प्रयोग से कुछ समय के लिए ही जीता जा सकता है।प्रेम वो शहद है जो संबधों को मधुर, मीठा बनाता है।मधुर संबंध पारिवारिक खुशहाली को जन्म देते हैं और पारिवारिक खुशहाली एक सफल जीवन की नींव है।
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से🙏
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गुरू कृपा ही केवलम्🌷
“आत्मविश्वास”
लक्ष्य जितना बडा होगा, मार्ग भी उतना ही बडा होगा और बाधाएँ भी अधिक आयेंगी ।यदि आपकी महत्वाकांक्षा /लक्ष्य बडी होगी तो उसके लिए सामान्य आत्मविश्वास नहीं बहुत उच्च स्तरीय आत्मविश्वास चाहिए।एक क्षण के लिए भी निराशा आयी वहीं लक्ष्य मुश्किल और दूर होता चला जायेगा ।
मनुष्य का सच्चा-साथी और हर स्थिति में उसे सँभालने वाला अगर कोई है तो वह आत्मविश्वास ही है ।आत्मविश्वास हमारी बिखरी हुई समस्त चेतना और ऊर्जा को एकत्रित करके लक्ष्य की ओर ले जाता है।
दूसरों के ऊपर ज्यादा निर्भर रहने से आत्मिक दुर्बलता तो आती ही है, साथ में छोटी छोटी ऐसी बाधाएँ आती है, जो पल भर में आपको विचलित कर जाती है ।इसलिए स्वयं पर भरोसा रखिए।दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है ,जो आपके दृढ-संकल्प से बडा हो।
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से🙏
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गुरू कृपा ही केवलम्🌷
जब किसी तालाब में मोटी काई लग जाती है ,तब पानी दिखाई नहीं देता है ,चारों तरफ़ हरी-हरी काई ही दिखाई देती है।हाथ से हटाओ तो वहाँ से हाथ हटाते ही काई फिर से पानी को ढँक लेता है।वही दशा मन की है।मन मे दुनिया के छल-प्रपंच ,कलह -कल्पना और भ्रम जनित नाना प्रकार के विकारों की काई छाई हुई है।जब सत्-सज्जनों की संगति होती है तो लगता है कि मन की काई साफ हो गई है।जैसे ही वहाँ से अलग हुए ,फिर छल-प्रपंच एवं विकारों की काई मन में छा जाती है ।बडी विकट है, यह काई बारंबार हटाने पर भी मन से हटने का नाम नहीं लेती है।बस मन में छाई हुई काई को हटाते रहें, हटाते रहें और दिन-रात निरंतर सावधानी रखें ताकि मन में फिर से कोई काई जमने न पाये ।
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से।🙏
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गुरू कृपा ही केवलम् 🙏
मन कभी भी खाली नहीं बैठ सकता।कुछ ना कुछ करना इसका स्वभाव है ।इसे काम चाहिए ।अच्छा काम करने को नहीं मिला तो बुरे की ओर भागेगा।
मन जहाँ खाली हुआ, बस उपद्रव प्रारंभ कर देगा।लडाई-झगड़ा, निंदा-आलोचना, विषय-विलास ,ऐसी कई गलत जगह पर यह आपको ले जायेगा, जहाँ पतन निश्चित है।
पतन एक जन्म का हो तो कोई बात नहीं ।ऐसे कई अपराध और गलत कर्म करा देता है ,जिसके प्रारब्ध फल को भुगतने के लिए कई कई जन्म भी कम पड जाते हैं ।
मन को सृजनात्मक और रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखिये।इससे आपके आध्यात्मिक विकास के साथ भौतिक विकास भी होगा।मन सही दिशा में लग गया तो जीवन मस्त (आनंदमय)हो जायेगा ,नहीं तो जीवन अस्त-व्यस्त, तनावग्रस्त, और अपसेट होने मे देर नहीं लगेगी।
जीवन में भगवतप्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।जो लक्ष्य बिना बनाए जीवन व्यतीत कर रहे हैं ,उनका जीवन तो जा रहा है, और मौत भी आयेगी ही ,इसलिए जीवन में लक्ष्य पहले ही बना लेना चाहिए।
लक्ष्य बनाने पर बहुत लाभ होता है।अगर लक्ष्य बन गया तो वह खाली नहीं जायेगा ,कमी रह जायेगी तो तो योगभ्रष्ट हो जाओगे।
लक्ष्य बनाने पर हमारा साधन, उद्देश्य को सुनिश्चित करने के लिए होता है।समय बर्बाद नहीं होता है।समय सार्थक होने पर स्वाभाविक वृत्तियाँ स्वतः सही हो जाती है ।अवगुण स्वतः दूर होते हैं ।संसार का खिंचाव कम होता है ।आस्तिक भाव बढता है।अगर जीवन में यह परिवर्तन दीख नहीं पड रहा है तो लक्ष्य नहीं बना है, साधन हाथ नहीं लगा है ।साधु,गुरू, शास्त्र का संगत नहीं मिला है।
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से।🙏🙏
एक अच्छे मिलनसार, मददगार शख्सियत की जीवन दृष्टि 🙏मृत्यु तो अटल है, लेकिन एक अच्छे मिलनसार, मददगार शख्सियत की असामयिक मृत्यु परिवार के साथ पूरे समाज को झकझोर कर रख देती है।आज भी किसी परिचित के अस्वस्थ होने पर एक अन्जान आशंका से मन घिर जाता है।वे मददगार शख्सियत कानाम-परिमल किशोर सिन्हा, प्यार से लोग बिट्टू कहकर पुकारते थे।पिता-स्व.ब्रजनंदन प्रसादमाता-स्व.मालती देवीशिक्षा-बी.काम.आनर्स, एम.बी.ए.मूल रूप से बेगूसराय, सनहा ग्राम निवासी उनका जन्म, लालन-पालन,कायस्थ टोला, केशोपुर, जमालपुर मे हुआ था।बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे ।पिता रेलवे मे गार्ड थे।माता देवभक्त प्रेम की मूर्ति, गृहिणी थी।विरासत में माता-पिता एवं परिवार के अच्छे संस्कारों एवं अच्छी परवरिश के कारण उन्हें उच्च कोटि की सोच मिली ।परिवार के सभी सदस्यों ,मित्रों के वे चहेते थे ।कुछ बहने उन्हें प्रेम से बिट्ठला कहकर पुकारती थी ।रेलवे हाई स्कूल, जमालपुर से स्कूली शिक्षा प्राप्त की।इंटरमीडिएट करने के बाद उनका रूझान हिंदी साहित्य की ओर मुड गया ।उनके बडे भैया प्रोफेसर डाक्टर कमल किशोर सिन्हा (झूलन भैया)उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने आइ,आइ,टी,प्रवेश हेतु फार्म लाकर दिया था ,पर उस समय उनकी रूचि हिंदी-साहित्य के प्रति इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने फार्म देखा तक नहीं।वे हिंदी-साहित्य के इतने उत्सुक पाठक थे कि कई काव्य, महाकाव्य उन्हें कंठाग्र थे ।साहित्य मे इतने रम गए कि वे भूल गए कि उन्हें अपनी भविष्य की आजीविका के लिए क्या करना चाहिए।तब उनके पिताजी जबरन उन्हें पटना. लाकर पटना विश्वविद्यालय में बी.काम.आनर्स मे दाखिला करा दिया जहाँ से वे उच्च श्रेणी में उतीर्ण हुए।राँची से एम.बी.ए. डिग्री हासिल करने के बाद भारत सरकार के उपक्रम मे उच्च पद पर पदासीन हुए। उनका विवाह श्री अरूण भूषण की पुत्री अनामिका भूषण से हुआ ।उनके दो छोटे छोटे बच्चे हैं ।अपने दायित्वों के निर्वहन के दौरान ज्यादा समय भोपाल एवं दिल्ली में व्यतीत किया ।उनकी उदारता अद्भुत थी।उनको दूसरों को मदद करने के अलावा अपना कोई शौक नहीं था ।वे अत्यंत उत्साही, कर्मठ,सौम्य, सक्रिय, मिलनसार, जूझारू, खुशमिजाज, ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरपूर शख्सियत थेक्ष।न किसी से गिलवा न किसी से शिकायत।अपने ही धुन में मतवाला, जिंदादिल इंसान थे।जहाँ वे होते थे हँसी-खुशी का माहौल अपने आप बन जाता था।खूब हँसी-मजाक होती थी ।कहते हैं न इस दुनिया में जो आया है वो एक-न-एक दिन जरूर जायेगा ।बस फर्क इतना है कि कोई अपनी छाप छोड़कर चले जाते हैं, कोई कुछ नहीं।वे वर्ष 2020 से कारोना से संक्रमित थे।उम्र सीमा से कम होने के कारण टीका प्राप्त करने मे असफल रहे ।कारोना के कारण दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हुए ।अंतिम दिनों में राजीव गांधी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल मे भर्ती थे।डाक्टरों के अथक प्रयासों के बावजूद 2 मई 2021 को उनका देहांत हो गया।हमारे द्वारा उन्हें स्वर्गीय नहीं माना गया है, क्यूंकि ऐसे मिलनसार, मददगार शख्सियत कभी मरते नहीं ।वे हमेशा हमारी दिलों में रहेंगे।हद-से-हद मौत ऐसे शख्सियत की जिस्म मिटा सकती है ।किन शब्दों में अपनी संवेदना प्रकट करें ।आँखों के आँसू सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं ।पूरे परिवार-समाज का एक अनमोल रत्न-धरोहर चला गया ।बडे भाइयों ने लक्ष्मण जैसा भाई,भाभियो़ ने लक्ष्मण जैसा देवर खो दिया है ।बहनों के आँखों का सितारा चला गया है ।दो छोटे छोटे बच्चे जिनके सर से पिता का साया उठ गया, उसका दर्द है, उसे कैसे नकारूँ?दिल से भावपूर्ण श्रद्धांजलि💐

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हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से 🙏
1.अपने ईर्द-गिर्द माहौल/वातावरण को शुद्ध, पवित्र, शांत और खुशनुमा रखें
2.जैसा अन्न, वैसा मन।जो भी अन्न ग्रहण करें वह शास्त्र-सम्मत और सात्विक होने चाहिए।राजसी एवं तामसी भोजन से बचें।भोजन को दवाई समझें।
3.सदा रहें सतर्क, व्यस्त, सावधान एवं प्रसन्न।
4.छोटा सा पाप,छोटीसी भूल,छोटीसी बीमारी, छोटीसी चिंगारी को कभी छोटा मत समझें।भविष्य में यही भयंकर रूप धारण कर लेते हैं।
5.किसी भी विपत्ति मे गुरू/ईश्वर के प्रति अश्रद्धा मन मे न लावें।
6.यदि कोई काम नहीं हो तो अच्छे साहित्यों का अध्ययन करें।
7.सुबह/शाम एकांत मे करूण भाव से प्रार्थना करें।🙏
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🔮अनमोल मोती🔮
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आदमी के हाथ मे कुछ भी नही है, अपने स्वयं के शरीर की छोटी से छोटी क्रिया तक अपने हाथ मे नही है , छींक तक । अपने ही शरीर के किसी भी वेग का नियन्त्रण आदमी के स्वयं के हाथ मे नही है, बाक़ी और तो क्या होगा।श्वास तक अपने नियन्त्रण मे नहीं है , जब तक चल रही है, चल रही है, जब रूक जायेगी, तब एक साँस तक न ली जा सकेगी, गला सुखा हुआ होगा,प्यास घनीभूत होगी, पर एक घूँट पानी अंदर न जा सकेगा, तब पता चलेगा कि आदमी कितना असहाय है, जो चल रहा था, उसे चलाने वाला वो नही था ,कोई और ही शक्ति चला रही थी, ये अंत मे तो पता चलता है, पर ये अनुभूति यदि बहुत पहले हो जाये, तो सारा अंहकार गिर जाये , सारे झगड़े , सारे फ़साद, सारे उपद्रव , ख़त्म हो जाये।जिसने ऐसा जान लिया कि मैं नहीं , कोई और ही है, जिससे मेरे साथ साथ सारा अस्तित्व तरंगायित है, चलाये मान है, और वो शक्ति है परमात्मा , जिसने भी ऐसा जान लिया, वही ज्ञानी है, फिर अंहकार नही बच सकता , और जिसने इसे अभी तक नही जाना, वही अज्ञानी है।
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से🙏
हमारी यात्रा बहुत छोटी है
*हमारी यात्रा बहुत छोटी है मैंने इसे आज सुबह से कम से कम 5 बार पढ़ा है। बहुत ही सत्य और सुन्दर लिखा है*
एक महिला बस पर चढ़ गई और एक आदमी के बगल में बैठ गई, उसे अपने कई बैगों से मार दिया।
जब पुरुष चुप रहा, तो महिला ने उससे पूछा कि जब उसने उसे अपने बैग से मारा/ hit kiya तो उसने शिकायत क्यों नहीं की?
उस आदमी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया:
“इतनी महत्वहीन बात से परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारी एक साथ यात्रा इतनी छोटी है,
क्योंकि मैं अगले पड़ाव पर उतर रहा हूँ”
इस जवाब ने महिला को इतना परेशान किया, उसने उस आदमी से उसे माफ़ करने के लिए कहा और सोचा कि शब्दों को सोने में लिखा जाना चाहिए
हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों, ईर्ष्या, दूसरों को क्षमा न करने, असंतोष और बुरे व्यवहार के साथ काला करना समय और ऊर्जा की एक हास्यास्पद बर्बादी है।
क्या किसी ने आपका दिल तोड़ा? शांत रहें।
यात्रा बहुत छोटी है
क्या किसी ने आपको धोखा दिया, धमकाया, धोखा दिया या अपमानित किया?
आराम करें – तनावग्रस्त न हों
यात्रा बहुत छोटी है।
क्या किसी ने बिना वजह आपका अपमान किया?
शांत रहें। अनदेखी करो इसे।
यात्रा बहुत छोटी है।
क्या किसी ने ऐसी टिप्पणी की जो आपको पसंद नहीं आई?
शांत रहें। नज़रअंदाज़ करना। क्षमा करें, उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में रखें और बिना किसी कारण के उन्हें अभी भी प्यार करें।
यात्रा बहुत छोटी है।
कुछ लोग जो भी समस्याएँ हमारे सामने लाते हैं, वह समस्या तभी होती है जब हम उस पर विचार करें, याद रखें
कि हमारी एक साथ यात्रा बहुत छोटी है।
हमारी यात्रा की लंबाई कोई नहीं जानता। कल किसी ने नहीं देखा। कोई नहीं जानता कि यह अपने पड़ाव पर कब पहुंचेगा।
हमारी एक साथ यात्रा बहुत छोटी है।💛
आइए हम दोस्तों और परिवार की सराहना करें। उन्हें अच्छे हास्य में रखें। उनका सम्मान करें। आइए हम आदरणीय, दयालु, प्रेममय और क्षमाशील बनें।
क्योंकि हम कृतज्ञता और आनंद से भर जाएंगे, आखिरकार हमारी एक साथ यात्रा बहुत छोटी है।
हर किसी के साथ अपनी मुस्कान साझा करें… अपना रास्ता चुनें कि आप जितना सुंदर बनना चाहते हैं, उतना ही सुंदर बनें
हमारी यात्रा बहुत छोटी है
अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें 🏼
शुभ प्रभात !
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से🙏
गुरू कृपा ही केवलम्
जैसे प्रभु हमें दिखाई नहीं देते ,ठीक वैसे ही जो हम “हरिनाम”लेते हैं उसका प्रभाव हमें तुरंत दिखाई नहीं देता ,बल्कि समय आने पर महसूस जरूर होता है।
“हरिनाम”लेने से हमारी “अंतरात्मा”की सुरक्षा होती है, जिसे इस कलियुग के किसी भी तरह का कोई पाप हमारी “अंतरात्मा”को छू नहीं सकते और हम बुरे कर्मों से बच जाते हैं।
भवसागर यात्रा निश्कलंक पूर्ण करने के लिए जब भी जहां भी ,जैसे भी स्थिति मे “हरिनाम”ले सकते हैं।
पतझड़ होता है तो तभी वृक्षों पर हरी कोपलें फूटती हैं और सूर्यास्त होता है, तो तभी अंधकार के बाद एक नया सवेरा भी जन्म लेता है ।पतझड़ होता है ताकि हरियाली छा सके एवं अंधकार होता है ताकि अरूणोदय की लालिमा का आनंद हम सबको प्राप्त हो सके ।जीवन भी कुछ इस तरह का ही है।यहाँ विसर्जन के साथ ही सृजन जुडा हुआ है।
हमारे दुःखों का प्रमुख कारण यह भी है कि हम जीवन को केवल एक दृष्टि से देखते हैं ।हम जीवन को सूर्यास्त की दृष्टि से तो देखते हैं पर सूर्योदय की दृष्टि से नहीं देख पाते।परमात्मा से शिकायत मत किया करो क्यूंकि वो हमसे बेहतर इस बात को जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा हो सकता है।
उस ईश्वर ने आपकी झोली खाली की है तो चिंता मत करना क्यूंकि शायद वह पहले से कुछ बेहतर उसमें डालना चाहते हैं ।सुख और दुख जीवन रूपी रथ के दो पहिये हैं।सुख के बिना दुख का कोई अस्तित्व नहीं तो दुख के बिना सुख का कोई महत्व नहीं।इसलिए दुख आने पर धैर्य के साथ प्रभु नाम का आश्रय लेकर इस विश्वास के साथ प्रतीक्षा करो कि प्रकाश भी नहीं टिका तो भला अंधकार कैसे टिक सकता है?
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से🙏
मौन ब्रत
हमारे पूज्य गुरुदेव के सौजन्य से🙏
हमारे पूज्य गुरुदेव के अनुसार विश्व का एकमात्र धर्म सनातन वैदिक(हिन्दू)धर्म है, जिसमें विश्व कल्याण निहित है ।सनातन वैदिक संस्कृति में सत्य ब्रत,सदाचार ब्रत,संयम ब्रत,आस्तेय ब्रत,एकादशी ब्रत व प्रदोष ब्रत आदि बहुत से ब्रत हैं, परन्तु मौनव्रत अपने आप मे एक अनूठा ब्रत है।इस ब्रत का प्रभाव दीर्घगामी होता है।इस ब्रत का पालन समयानुसार किसी भी दिन ,तिथि व क्षण से किया जा सकता है।अपनी इच्छाओं व समय की मर्यादाओं के अंदर व उनसे बंधकर किया जा सकता है ।योगशास्त्र कहता है कि जो मनुष्य शरीर रूपी पिंड को बराबर जानता है उस मनुष्य को समष्टि रूप ब्रह्मांड जानना मुश्किल नहीं है।शरीर में चार वाणी है।जैसे कि परावाणी ,नाभि (टुण्डी)मे,पश्यन्ति वाणी, छाती मे, मध्यमावाणी कण्ड (गले मे) और बैखरी वाणी मुँह मे है।शब्द की उत्पत्ति परावाणी मे होती है परंतु, जब शब्द स्थूल रूप धारण करता है, तब मुँह मे रही हुई वैखरी वाणी द्वारा बाहर निकलता है।
मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है ।मौन आंतरिक तप है इसलिए यह आंतरिक गहराइयों तक ले जाता है।मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते हैं ।वाणी का अपव्यय रोक कर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम मौन को उपलब्ध होना है।
मौन रहने के फायदे
1,दिमाग तेज काम करता है।अगर दिन मे कुछ देर शांत माहौल में शांत बैठते हैं तो उस वक्त केवल एक ही जगह पर दिमाग लगता है और कहीं भी ध्यान भी नहीं। भटकता।
- तनाव दूर होता है।
- ऊर्जा बढती है ।
- बातचीत बेहतर होती है।
5.कुछ गलत (दुर्वचन)कहने से बचते हैं। - मानसिक शांति।🙏🙏