पहली नौकरी💐

कहते हैं कि पहली नौकरी और पहला प्यार इंसान जिंदगी भर याद रखता है। 1985 की बात होगी,मुंगेर मे वकील का पेशा रास नहीं आया ।सिविल सेवा और अन्य प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी हेतु पटना पहुंचा।पटना में दीदीया, जीजाजी के फ्लैट मे टिका।माँ,पापाजी हमे बोरिंग रोड बडका बाबू (स्व.सर्वेश्वर प्रसाद ,”जनक” भूतपूर्व आयकर आयुक्त)के यहां ले गये । प्यारू भैया (डा.प्रोफेसर बालगंगाधर प्रसाद) के मित्र विनय कंठ साहब राजेंद्र नगर मे East &West कोचिंग संस्थान का संचालन करते थे ।प्यारू भैया ने उनके नाम की चिट्ठी हमें सौंप दी।हमारा दाखिला उस कोचिंग संस्थान में हो गया।उस कोचिंग संस्थान में हमारे कुछ मित्रों के नाम जो संस्मरण मे है, वे,सदय,शिवेंदु जयपुरियार ,विकास ठाकुर आदि।हमलोग कंठ सर की प्रतिभा से अभिभूत थे ।उनके व्यक्तित्व, उनके व्यवहार ,उनकी विद्वता ,उनके अनुशासन, उनकी कर्मठता, उनके स्नेह से।आज भी उनकी याद आती है तो उनका सौम्य मुस्कुराता हुआ चेहरा हमारे आँखों के सामने आ जाता है।वे गणित के शिक्षक थे पर प्रायः हर विषय पर उनकी पकड थी।

कुछ ऐसे सगे-सम्बन्धी मिले जो बार बार कहते थे कि सरकारी नौकरी प्रतियोगिता परीक्षा मे सफल होने के लिए कम-से-कम दस वर्ष चाहिए।हौसला डिगा हुआ था ।रात में सोते समय आँखें बंद होते ही खुद से प्रश्न करने लगता कि यदि सफल नहीं हुआ तो मेरा क्या होगा?परिवार की उम्मीदों का क्या होगा?यही सोच-सोचकर एक अन्जाम आशंका से कभी -कभार आंखों में पानी आ जाता।

पटना आने पर 1985 के जुलाई-अगस्त महीने में खुशखबरी मिली की अपनी जिंदगी के प्रथम प्रतियोगिता परीक्षा बिहार राज्य अवर सेवा चयन पर्षद द्वारा आयोजित परीक्षा मे उतीर्ण हो गया ।पर उसका नियुक्ति पत्र नहीं मिला।हमारी पढाई जारी रही ।इसी समय बिहार लोक सेवा आयोग, पटना द्वारा अपने कार्यालय के रिक्तियों के लिए परीक्षा आयोजित की गयी ।हमारी तैयारी इतनी थी कि हमें उस परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ और हमें तुरंत नियुक्ति पत्र दे दिया गया।कार्यालय मे अच्छा माहौल था।हमारे साथ योगदान करने वाले अच्छे मित्र अनिल, शमीम, सुरेश दास थे।हमारे पहले Section Officer तारकेश्वर प्रसाद(तारा बाबू)थे ।

हमारे यहां आज भी कुछ लोगों की मानसिकता है कि हर बात को अपनी स्वार्थ की नजरों से देखते हैं।सिर्फ अपनी जातियों के लोगों का स्वार्थ मे समर्थन करना और दूसरे कमजोर जाति के लोगों को परेशान करना एक प्रचलन है।इस तरह की भेदभाव की मानसिकता आज भी विद्दमान है जिसे महसूस कर मन खराब हो जाता है।

कार्यालय मे दोपहर को अपने जगह पर नाश्ता कर रहा था कि एक सज्जन हमारे टेबल के करीब आये ।उन्हें मैं पहचानता नहीं था ।उन्होंने पाकेट से शराब का बोतल निकाल कर शराब हमारे गिलास मे डालकर खडे -खडे पीने लगे ।हमारे द्वारा विरोध करने पर गुस्से में बरसने लगे और कमर से तमंचे निकाल लिए ।सहकर्मियों के बीच बचाव करके घर भेज दिया गया।बाद मे पता चला कि वे उस कार्यालय के पुराने कर्मचारी थे।इस घटनाक्रम ने कार्यालय के पूरे माहौल की पोल खोल दी ।आयोग के तत्कालीन माननीय अध्यक्ष A.K.M.Hasan साहब का भी ध्यान इस ओर गया ।हालांकि उक्त शराबी कर्मचारी जिनका नाम हमें स्मरण नहीं हो रहा है को पहले भी कई बार दंडित किया जा चुका था।

उक्त कार्यालय का एक रोचक वाक्या हमें याद है।हमारे कायस्थ जाति मे एक कहावत है कि “नौकरी नहीं तो छोकरी नहीं”अर्थात जब तक लडके को नौकरी नहीं मिलेगी तब तक शादी के.लिए रिश्ता नहीं आयेगा।उस कार्यालय मे योगदान करते ही रिश्तों की लाइन लग गयी ।कुछ लोग तो सीधे हमारे सम्पर्क मे आये।हमारा सीधा सा उत्तर होता कि हमारे माता पिता अभिभावक से सम्पर्क करें।एक सज्जन कुछ ज्यादा व्याकुल थे।उन्होंने ने कहा कि शादी आपको करनी है या आपके अभिभावक को ? मै कुछ समय सोचने लगा,फिर जबाब दिया ,सर जी,ऐसी बात है तो शादी आपको करनी है या आपकी लडकी को।यदि आपका सोच ऐसा है तो अपनी लडकी को ही हमसे सम्पर्क करने कहिए।हमलोग बातें कर तय कर लेंगे।बाद मे वे सज्जन फिर नजर नहीं आये।

सचिवालय के लिए नियुक्ति पत्र प्राप्त होते ही हमारे द्वारा लोक सेवा आयोग कार्यालय छोडऩे की इच्छा जाहिर की गयी।हमारे तत्कालीन माननीय अध्यक्ष महोदय नहीं चाहते थे कि मै आयोग कार्यालय छोडू।उन्होंने इसके लिए हमें समझाने का प्रयास किया।

अविनाश, जब इस कार्यालय और सचिवालय का पद,वेतन एक समान है तो आप यह कार्यालय छोडकर सचिवालय क्यूँ जाना चाहते हैं।फिर उन्होंने मजाकिया लहजे मे कहा ,ओ मै समझ गया।आप सचिवालय में ऊपरी कमाई के लिए जा रहे हो।उस समय हमें ज्यादा ज्ञान नहीं था कि तुरंत उनके सवाल का जबाब दे।एक -दो दिनो के बाद सोचकर कहा सर जी।सचिवालय बहुत बडा है, वहां प्रोन्नति के ज्यादा अवसर प्राप्त होंगे।इस जबाब से वे संतुष्ट हुए और सचिवालय योगदान करने की अनुमति दे दी गयी।💐

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